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Tuesday 14 August 2012

स्‍वतंत्रता आ छंदक मुक्ति

स्‍वतंत्रता दिवस क' उपलक्ष्‍य मे एकटा आर स्‍वतंत्रताक बात करी ।छंदक स्‍वतंत्रता............।मैथिलीक एकटा वर्ग अपन छंद-मोह कें प्राचीन साहित्‍यक महानता आ लोकप्रियता सँ जोड़ैत अछि ,ठीक बात.... मुदा जखन छंद अपना आप मे पूर्ण छलै तखन नवीन छंदक आवश्‍यकता किएक भेलै ,विभिन्‍न कवि पुरनके छंदक प्रयोग किएक नइ केलखिन ,ओ नया छंदक निर्माण आ पुरनका गति,यतिक परिवर्तन दिसि किएक प्रयाण  केलखिन ।नवीन छंदक आवश्‍यकता आ छंद वैविध्‍यक गर्भ मे मुक्‍त-छंदक बिया छैक । हिंदी आ मैथिली मे मुक्‍त छंदक प्रवाह बांग्‍लासाहित्‍य क' बाटे आयल अछि आ स्‍वतंत्रताक पूर्वे ई स्‍थापित भ' गेल अछि ।छंदक प्रति मोह नवीन नइ अछि ,जइ समै मे मुक्‍तछंदक प्रयोग बढ़ल ,किछु गोटे जोर- शोर सँ छंदक उपयोगिता बतेनइ प्रारंभ क' देलखिन ।एहन व्‍यक्ति सभ कें आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी बुझबैत कहलखिन 'आइ काल्हि लोक सभ कविता आ पद्य कें एके चीज बुझैत छथिन ।ई भ्रम अछि ।कविता आ पद्य मे वैह भेद छैक जे अंग्रेजी पोइट्री आ वर्स मे छैक ।कोनो प्रभावोत्‍पादक आ मनोरंजक लेख ,बात वा वक्‍तृताक नाम कविता छैक आ नियमानुसार गानल-जोखल सतराक नाम पद्य ।जअ पद्यक पढ़ला आ सुनला सँ चित्‍त पर असर नइ होइत छैक ओ कविता नइ ।ओ गानल-गाथल शब्‍द स्‍थापना मात्र अछि ।गद्य आ पद्य दूनू मे कविता संभव छैक ।'



जइ बात कें सौ साल पहिले विद्वतापूर्ण तरीका सँ कहि देल गेलै आ विद्वत्समाज बुझियो गेलै ,तइ पर प्रश्‍न ......।मुदा प्रश्‍न अहां क' सकै छियै ,उत्‍तरो सुनबा लेल तैयार रहू आ उत्‍तर पर गुटबाजी केला सँ काज नइ चलत ।
किछु गोटे मुक्‍त छंद कें अक्षमता ,आलस्‍य (काहिलपन) सँ जोड़ैत छथिन ,हुनकर विशाल मस्तिष्‍कक लेल ई तथ्‍य अनिवार्य कि विभिन्‍न भाषा मे मुक्‍तछंदक मुख्‍य प्रणेता जेना रवींद्रनाथ ,निराला आ यात्री पहिले छंदे मे लिखलखिन आ हुनकर छंदबद्ध रचनाक महत्‍व प्राचीन क्‍लासिकल साहित्‍यक महत्‍व सँ तुलनीय अछि ।मुक्‍त छंदक प्रति हुनकर झुकाव छंदबद्धताक सीमाक कारणें संभव भेल ।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी निराला जी क' मुक्‍तछंद प्रेम पर एना लिखैत छथिन ' छंदक पगहा क' प्रति विद्रोह करैत ओ ओइ मध्‍ययुगीन मनोवृत्ति पर प्रहार केलखिन जे छंद आ कविता कें प्राय: समानार्थक बुझैत अछि ।कविता भाव-प्रधान होइत छैक आ छंद ओकरा ऐ रूप मे सहायता करैत छैक ।छंदक पगहा कें अस्‍वीकार करै वला कवि कविता क' ओइ समस्‍त सिन्‍नुर-टिकुली कें अस्‍वीकार करैत छैक जे काव्‍य मे संगीतक गुण भरैत छैक आ अइ प्रकारें काव्‍य कें अलौकिक बनबैत छैक । मुदा निराला जी जखन छंदक प्रति विद्रोह केलखिन तखन हुनकर उद्देश्‍य छंदक अनुपयोगिता बतेनइ नइ छलै ।ओ मात्र कविता मे भावक- व्‍यक्तिगत अनुभूतिपूर्ण  भावक -स्‍वच्‍छंद अभिव्‍यक्ति कें महत्‍व देब' चाहैत छलखिन ,जेकरा ओ मुक्‍त छंद कहैत छथिन ,ओहियो मे एकटा झंकार आ ताल विद्यमान अछि ।'


निराला स्‍वयं 'परिमल'(1929) मे लिखैत छथिन - ' मनुष्‍यक मुक्ति जेना होइत छैक तहिना कविता के सेहो ।मनुष्‍यक मुक्ति कर्मक बंधन सँ छुटकारा अछि आ कविताक मुक्ति छंदक शासन सँ अलग भेनए  '


कवि आ कविता क' अस्तित्‍व लीक पर चलबा सँ नइ ।सर्जक कोनो कुम्‍हारक सांचा ल' के नइ चलै छैक ,एके मुंह कानक पचास टा मूर्ति क्षणे -पले मे बना देबाक सामर्थ्‍य कविक सामर्थ्‍य नइ छैक ।यदि रमणीयता नवीनता आ नव वस्‍तु क' माध्‍यमे आबैत अछि तखन सब बंधन अग्राह्य ।भाषा ,बिंब ,प्रतीक ,शब्‍द सभ अपन अपन ढंग सँ ।खतरा एतबे बस कि नवीनता फैशन नइ बनि जाइ ,मुदा यदि नवोन्‍मेष किछु रचबा के अछि ,तखन ओ अतिक्रमणे करैत छैक ।



आ बाल्‍मीकि ,कालिदासक,विद्यापतिक  नाम लेबा सँ काज नइ चलत आ ने हुनकर नकल केला सँ केओ कालिदास भ' जायत ।कालिदास साहित्‍य अपन समै के शास्‍त्र के नइ मानै छैक ओ पचासो जगह आ पचासो तरीका सँ शास्‍त्रक अतिक्रमण करैत छैक ।साहित्‍य शास्‍त्रक डिबिया क' पाछु महुआइत ,लसियाइत चलै वला चीज नइ छैक ,ई शास्‍त्रो कें दीप देखाबै वला चीज छैक ।सभ के पता छैक कि मात्र रस सम्‍प्रदायक अतिरिक्‍त सभ सम्‍प्रदाय कालिदासक बादे जनमल ।तखन .....साहित्‍य पहिले कि शास्‍त्र ।ओना विवाद पुरान छैक कि मुर्गी पहिले या अंडा आ ई विवाद चलितो रहै त' कोनो हर्ज नइ ,बेसी सँ बेशी दियादी झगड़ा जँका ि‍कि अहां अपन आडि़ मे रहू आ हम अपन आडि़ मे रहब ।तैयो बहसा बहसी नइ हेतै त' खखसा -खखसी त' जरूर हेतै ।ओना स्‍वतंत्रता दिवसक अवसर पर साहित्‍य मे बहुपक्षीय स्‍वाधीनता क' आकांक्षी रवीन्‍द्रनाथ ,निराला आ यात्री कें नमन ............।



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