भाय साहेब कार सँ मामा गाम जेबा के विचार बनेलखिन ।भौजी निच्चे आंखिए एना देखलखिन जेना ऐ यात्रा मे भाय साहेब सब किछु लुटा देता । फेर भौजी कें बौंसए क कम सँ कम पनरह साल पुरान तरीका अपनाबैत कहलखिन ‘चिन्ता नइ करू ।बहुत दिन बाद जा रहल छी ,खाली हाथ कोना आबए देता , आ माए सेहो कत्ते दिन बाद गेलै हन ।‘ भौजी क’ चिंता तैयो समाप्त नइ भेलेन ,तखन भाए साहेब बड़का बेटा के सेहो तैयार क देलखिन ।मानि लियओ जे जेना खरचा हेतइ त हेतइ विदाइयो त ऽ हेबे करतइ । आ विदाइ के समै बेटा के पांच सौ टका मामा देब ऽ लागलखिन त ऽ छौड़ा बाप दिस देख ऽ लागलए । भाए साहेब के पित्त चढ़ेन जे छौड़ा लै किएक नइ छइ आ वौआ बूझइ जे लेला क ऽ बाद पप्पा डांटि ने देथि । आ माए गुम्मे रहलखिन भाए कें पैसा खर्च होए के चिंता अलग आ वौआ गाड़ी सँ आयल से चिंता अलगे ............
(विदेहक 107म अंक मे प्रकाशित)
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