फूल सँ फूल बिया सँ बिया निकलैत
माटि सँ माटि
पसेना सँ पसेना
आ तहिना पैसा सँ पैसा निकलि रहल
देश ओतबे टा
संवृद्धिक समाचारक बीच
ह्रदय छोट सँ छोट होइत
गाड़ी सँ गाड़ी
आ गरीबी गरीबी के जनमाबैत
गहिर रंग आ
मझोलगर दरिद्रा
हजारों लाखों क खूने मे मिलल
जखन परिवर्तन देवी घोघट ओढ़ने छथिन
आ क्रांतिकुमारी हफीमाइल
दोस तोरा की बूझाइ छओ
देश दुनिया चुटकुला मसकी
गप्प गीत गजले तक रहतइ
जमानाक सब बुधिज्ञान
समस्यापूर्तिए तक सिमटि के
कालिदास आ विद्यापति
की बुझौएल बुझेता
या एकटा एहन सुक्खल गद्य
जेकरा चाही बस एकटा सलाईक काठी
दोस तोरा की बूझाइ छओ
ReplyDeleteदेश दुनिया चुटकुला मसकी
गप्प गीत गजले तक रहतइ
जमानाक सब बुधिज्ञान
समस्यापूर्तिए तक सिमटि के?
नीक लागल| खूब नीक लागल|