एकटा सभ्य आ सुसंस्कृत समाज मे बहुत रास भाषा ,बहुतो अलग अलग ढंगक साहित्यक उपस्थिति होइत छैक ,ताहि दुआरे प्रतिपदा क अस्तित्वक अर्थ मौलिकता आ रचनात्मकता सँ कनियो अलग नइ अछि ।हम विनम्रतापूर्वक अनुरोध करैत छी कि हमरा सुग्गा सन रटन्तु आ कौआ सन दोहराबइ वला लेखक नइ चाही ।आचार्य जगन्नाथ क शब्द मे
दिगन्ते श्रूयन्ते ,मदमलिनगण्डा: करटिन: ।करिण्य: कारूण्यास्पदमसमशीला:खलु मृगा: ।
इदानीं लोकेस्मिननुपमाशिखानां पुनरयम् ।नखानां पाण्डित्यं प्रकटयतु कस्मिन्मृगपति: ।
(भामिनी विलास क प्रथम श्लोक )
हमरा मैथिली लेखक लोकनि सँ अनुरोध कि ओ व्यापक परिपेक्ष्य मे लिखथि ,आ हिंदी या कोनो भाषा सँ डरेबा क आवश्यकता नइ छैक ,तहिना हिंदी क गरियेबाक सेहो कोनो आवश्यकता नइ छैक ।रचनात्मकता एकटा वृहद आ विशिष्ट वातावरण मे संभव होइत छैक ,हम सब गोटे ओइ दिसि प्रस्थान करी ।
आ हमर युवा मैथिल लेखक लोकनि सँ अनुरोध कि मौलिक खॉंटी होएबा क भ्रम मे सहजता क त्याग नइ करी । शब्दक चयन करबा मे ई ध्यान रहबाक चाही कि ओकर स्वीकार्यता आ व्यापकता कतेक छैक ।ताहि दुआरे मिथिलाक व्यापक भूगोल ,सामाजिक वैविध्य आ सांस्कृतिक स्तरक ध्यान राखनइ अपरिहार्य ।
समुद्रक दस किलोमीटर नीचा सँ शब्द खोजए वला के बहादुरी क तमगा मिलइ ,मुदा लेखकीय सम्मान दइ वला समाज परम पतित होइत छैक ,मुदा मिथिला मे एहन खराब स्थिति नइ छैक ।विभिन्न गुटवादी समीकरण ,घिनाउज ,राजनीतिक अवमूल्यन ,अशिक्षा आ जेहालतक बावजूद सांस्कृतिक स्तर पर समुन्नयनक आस बॉंकी छैक ।
बिना वैचारिक आधारक साहित्य बहुत अस्थायी आ तदर्थ किस्म क होइछ ,मुदा किछु लेखक ऐ बात के सही परिपेक्ष्य मे नइ स्वीकारैत छथि ,हमर कहब ई जे साहित्य मे विचारधारा क उपस्थिति पानि मे नून जेकां होयबा क चाही नइ कि पानि मे तेल जकां ।पानि मे सहसह करैत तेल ने देखए मे ने स्वाद मे आकर्षक होइत छैक ।तहिना अलंकार आ प्रतीकक उपस्थिति सेहो नियंत्रित आ मर्यादित होयबाक चाही ।
साहित्यक सर्वकालिक आ आधारभूत आवश्यकता 'मौलिकता' छैक ,जे मौलिक छैक ,सएह साहित्य छैक आ जे जतबे मौलिक छैक ओ ततबे साहित्य छैक ।लालित्यक प्रश्न बाद मे उठैत छैक ।आ जे मैथिली मे मौलिक छैक से आरो भाषा लेल मौलिक होयबा क चाही ।ऐ ठाम तुलनात्मक आलोचना क महत्व के हम पुन: स्वीकारैत छी आ मैथिल लेखक बंधु सँ निवेदन करैत छी कि सब तरह सँ मौलिकता क रक्षा करी ।
मौलिकता सँ जुड़ल एकटा आर प्रश्न ई अछि कि शास्त्रक अनुशासन कतेक जरूरी ।शास्त्रक अनुशासन ओतबे जरूरी जत्ते कि साहित्यक पाठकीयता बनल रहए ,ग्राह्यता मे स्वच्छंदता नइ रहए ,यद्यपि अर्थक बहुस्तरीयता वांछनीय अछि ।हमरा ई कहबा मे कोनो संदेह नइ कि शास्त्रक बान्ह तोड़ला क बादे महान साहित्यक रचना कोनो युग मे संभव भेलइ ।
कोनो बड़का काज एकटा व्यापक आ रचनात्मक वर्गक सहयोगक बादे सफल होइत अछि ।हमरा अहॉक रचनात्मकता पर पूरा विश्वास अछि ।अहॉ सभ गोटेक सहयोगे से सिंगरहार फूलेतइ आ एकर सुगंध दुनिया के सब कोना के आनंदित करए ,इएह कामना ।
ऐ ब्लॉग पर सब रचनात्मक व्यक्ति आ सब साहित्यिक विधा क स्वागत अछि ।संगे संग समाजशास्त्रीय आ गंभीर राजनीतिक परिचर्चा क लेल सेहो पर्याप्त जगह अछि ।
अपन रचना ,सुझाव ,टिप्पणी ऐ मेल पता पर भेजु
rabib2010@gmail.com
दिगन्ते श्रूयन्ते ,मदमलिनगण्डा: करटिन: ।करिण्य: कारूण्यास्पदमसमशीला:खलु मृगा: ।
इदानीं लोकेस्मिननुपमाशिखानां पुनरयम् ।नखानां पाण्डित्यं प्रकटयतु कस्मिन्मृगपति: ।
(भामिनी विलास क प्रथम श्लोक )
हमरा मैथिली लेखक लोकनि सँ अनुरोध कि ओ व्यापक परिपेक्ष्य मे लिखथि ,आ हिंदी या कोनो भाषा सँ डरेबा क आवश्यकता नइ छैक ,तहिना हिंदी क गरियेबाक सेहो कोनो आवश्यकता नइ छैक ।रचनात्मकता एकटा वृहद आ विशिष्ट वातावरण मे संभव होइत छैक ,हम सब गोटे ओइ दिसि प्रस्थान करी ।
आ हमर युवा मैथिल लेखक लोकनि सँ अनुरोध कि मौलिक खॉंटी होएबा क भ्रम मे सहजता क त्याग नइ करी । शब्दक चयन करबा मे ई ध्यान रहबाक चाही कि ओकर स्वीकार्यता आ व्यापकता कतेक छैक ।ताहि दुआरे मिथिलाक व्यापक भूगोल ,सामाजिक वैविध्य आ सांस्कृतिक स्तरक ध्यान राखनइ अपरिहार्य ।
समुद्रक दस किलोमीटर नीचा सँ शब्द खोजए वला के बहादुरी क तमगा मिलइ ,मुदा लेखकीय सम्मान दइ वला समाज परम पतित होइत छैक ,मुदा मिथिला मे एहन खराब स्थिति नइ छैक ।विभिन्न गुटवादी समीकरण ,घिनाउज ,राजनीतिक अवमूल्यन ,अशिक्षा आ जेहालतक बावजूद सांस्कृतिक स्तर पर समुन्नयनक आस बॉंकी छैक ।
बिना वैचारिक आधारक साहित्य बहुत अस्थायी आ तदर्थ किस्म क होइछ ,मुदा किछु लेखक ऐ बात के सही परिपेक्ष्य मे नइ स्वीकारैत छथि ,हमर कहब ई जे साहित्य मे विचारधारा क उपस्थिति पानि मे नून जेकां होयबा क चाही नइ कि पानि मे तेल जकां ।पानि मे सहसह करैत तेल ने देखए मे ने स्वाद मे आकर्षक होइत छैक ।तहिना अलंकार आ प्रतीकक उपस्थिति सेहो नियंत्रित आ मर्यादित होयबाक चाही ।
साहित्यक सर्वकालिक आ आधारभूत आवश्यकता 'मौलिकता' छैक ,जे मौलिक छैक ,सएह साहित्य छैक आ जे जतबे मौलिक छैक ओ ततबे साहित्य छैक ।लालित्यक प्रश्न बाद मे उठैत छैक ।आ जे मैथिली मे मौलिक छैक से आरो भाषा लेल मौलिक होयबा क चाही ।ऐ ठाम तुलनात्मक आलोचना क महत्व के हम पुन: स्वीकारैत छी आ मैथिल लेखक बंधु सँ निवेदन करैत छी कि सब तरह सँ मौलिकता क रक्षा करी ।
मौलिकता सँ जुड़ल एकटा आर प्रश्न ई अछि कि शास्त्रक अनुशासन कतेक जरूरी ।शास्त्रक अनुशासन ओतबे जरूरी जत्ते कि साहित्यक पाठकीयता बनल रहए ,ग्राह्यता मे स्वच्छंदता नइ रहए ,यद्यपि अर्थक बहुस्तरीयता वांछनीय अछि ।हमरा ई कहबा मे कोनो संदेह नइ कि शास्त्रक बान्ह तोड़ला क बादे महान साहित्यक रचना कोनो युग मे संभव भेलइ ।
कोनो बड़का काज एकटा व्यापक आ रचनात्मक वर्गक सहयोगक बादे सफल होइत अछि ।हमरा अहॉक रचनात्मकता पर पूरा विश्वास अछि ।अहॉ सभ गोटेक सहयोगे से सिंगरहार फूलेतइ आ एकर सुगंध दुनिया के सब कोना के आनंदित करए ,इएह कामना ।
ऐ ब्लॉग पर सब रचनात्मक व्यक्ति आ सब साहित्यिक विधा क स्वागत अछि ।संगे संग समाजशास्त्रीय आ गंभीर राजनीतिक परिचर्चा क लेल सेहो पर्याप्त जगह अछि ।
अपन रचना ,सुझाव ,टिप्पणी ऐ मेल पता पर भेजु
rabib2010@gmail.com
No comments:
Post a Comment