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Saturday 23 March 2013

मैथिलीक दुश्‍मन नं0 3

संस्‍कृत आ अपभ्रंशक दिशागत बोध कें मैथिली खूब नीक जँका धारण केलकै ।अपभ्रंश आ अवहट्ट मे दिशाक आधार पर तीन टा या चारि टा अंतर मानल गेलै ,मैथिली मे सेहो कतेको क्षेत्रभेद रहलै ,मुदा मुख्‍य अंतर उत्‍तरबरिया आ दक्षिणबरिया रहलै ।दक्षिणबरिया मैथिली के सदिखन निकृष्‍ट ,बज्‍जरसदृश आ असाहित्यिक मानल गेलै आ ई बोध एहन जबर्दस्‍त रहलै कि दक्षिणक कतेको सिद्धहस्‍त लेखक अपन गाम मे बाजै वला मैथिली के तिरस्‍कृत करैत किताबी मैथिली के प्रोत्‍साहित केलखिन ।सुमन जी ,आरसी बाबू आ हरिमोहन बाबूक साहित्‍य हमरा सामने अछि ,तीनो गोटे मे सँ केओ अपन गाम मे बाजै वला मैथिली क प्रयोग नइ केलखिन आ साहित्‍य मे आंचलिक आंदोलनक संभावनाक गर‍दनि घोंटि देल गेलै ।एखनो मैथिली मे लिखैक मतलब वैह मैथिली भेलै जे दरभंगा आ मधुबनीक संभ्रांत वर्ग मे लोकप्रिय अछि आ ऐ मे कोनो हस्‍तक्षेप आ अंतर करबाक अर्थ भेल ओइ भदेस मैथिलीक समर्थन जेकरा मैथिल विद्वत् समाज कहियो प्रोत्‍साहित नइ केलकै ,तें रेणु सन क्‍लासिक लेखक अपन प्रारंभिक रचनाक अलावे मैथिली सँ दूरी बनेने रहला ।

 एखनो साहित्यिक मैथिली आ मानक मैथिली कें एके मानल जाइत अछि ,जखन कि मानक मैथिली मूलत: राजकाज मे प्रयुक्‍त होमए वला मैथिली भेल आ साहित्यिक मैथिली मे एकाधिक भेद रहबाक चाही ,आ मैथिली के प्रत्‍यास्‍थ रूख देखबैत सभ क्षेत्रभेद कें अपना मे समाविष्‍ट करबाक चाही ,मुदा मैथिली मे ऐ समावेशी दृष्टिक सदैव अभाव रहलै आ अंगिका वा बज्जिका क' प्रति उपेक्षाक रूख सदैव मैथिली कें कमजोर केलकै ।मैथिल विद्वान 'शुद्ध मैथिली' पर बेंशी धियान देता आ भरि जिनगी शुद्धे करैत करैत भाषा के समाप्‍त करबाक उपक्रम करैत रहता ।साहित्यिक रूपभेद कें मानक मैथिली सँ अलग करबा पर कोनो धियानक जरूरी नइ  बूझल जाइत अछि एहि ठाम ।मानकता जरूरी छैक मुदा समाजिक आ सांस्‍कृतिक यथार्थक उपेक्षा क' बाद नइ ।थार्थक उपेक्षा क' बाद नइ ।

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