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Sunday 13 May 2012

विधा ,विद्या आ विषय

विधा ,ज्ञान आ विद्या क' एक-दोसर सँ ऊंच हेबाक चर्चा आ विवाद नवीन नइ ।सब के आनंदित करबैत ,तुष्टिकरण के अपनाबैत ई कहल जाए जे सब विधा एके रंग ,सब बड्ड नीक ,ईहो बात कोना ठीक भेल ।ओना कोनो कोनो विधा अपना समै क' प्रतिनिधि विधा होइत छैक ,ई एहन विधा होइत छैक जे अपन समय आ परंपरा क'सर्वोत्‍कृष्‍ट प्रतिनिधि होइत छैक ,केवल तथ्‍य आ विवरणक दृष्टिए नइ रचनाशीलता क' दृष्टि सँ ।मैथिली मे ई विवाद सेहो जहिं तहिं फैलल अछि ,सविस्‍तार सब प्रसंगक विवेचन ,विश्‍लेषण सँ रहित ,प्राय: एक दोसर पर कादो छाउर फेकैत ।किछु विधा एहन होइत छैक ,जइ मे विशेष नम्‍यता ,लोचगर ,नमरै वला ,ओइ मे जे राखि देबै ,ठूसि देबै ,सजा देबै सब नीक जँका रहत ।प्राचीन आ मध्‍यकालीन साहित्‍य मे महाकाव्‍य एहने छलै ,मुदा युग ,समै क' जटिलता ,बदलैत मनोवृत्ति आ विधा विषयक अंर्तप्रवेश्‍यता क' संगे संगे उपन्‍यास ओकर स्‍थान ल' लेलकै ।वर्तमान समै मे उपन्‍यास युगक प्रतिनिधि विधा अछि ,जे नाटक ,कथा ,कविता ,संस्‍मरण ,पत्र ,यात्रावृतांत सब के अपना मे समेटैत अछि ।कोनो विधा एकरा सँ बाहर नइ आ जे एकरा सँ बाहर ओ विधे नइ ।अपन विवरणात्‍मकता आ तथ्‍यात्‍मकता सँ उपन्‍यास आनोआन विधा कें सेहो अपन रसगंध सँ लसरिया रहल अछि ।सभ्‍यता क' सबसँ आह्लादकारी क्षण ,सबसँ मनोरंजक बात ,सबसँ बेशी चिंतन-मनन आ सबसँ बेशी रचनात्‍मकता क' एक साथ समेटने उपन्‍यास वा कथा साहित्‍य सबसँ आगू चलि रहल अछि ।आजुक बितैत क्षण के जे विधा सबसँ बेशी कसि के ,सबसँ नीक एंगिल सँ आ रत्‍ती रत्‍ती के पकड़ैत अछि ,वैह विधा उपन्‍यास थिक ।
एक बात आर स्‍पष्‍ट अछि जइ जातिक सबसँ प्रतिभाशाली लोक जइ विधा के सम्‍हारैत छथिन वैह विधा प्रतिनिधि विधा होइत छैक ।ओहुना साहित्‍य प्रतिभा सँ बेशी ,व्‍युत्‍पत्ति आ अभ्‍यास सँ कम चलैत छैक ।पहिले प्रतिभा ,व्‍युत्‍पत्ति बाद मे ,विधाक प्रश्‍न त' आर बाद मे ।आ प्रतिभा की अछि नव वस्‍त के स्‍पर्श करबाक योग्‍यता ,ई जेकरा मे छैक वैह छैक ,ओ गीत लिखतै ,गजल लिखतै ,कविता लिखतै ,कथा लिखतै ,सरस्‍वती ओकरे छथिन ।र्अ विवाद शीघ्र समाप्‍त होमै वला नइ मुदा हम अपन बातक समाप्ति लोंजाइनसक चर्चा सँ करैत छी ।प्‍लेटो आ अरस्‍तू क' हल्‍ला क' बीच पाश्‍चात्‍य साहित्‍य हिनका पर ध्‍यान नइ देलक ,तें ई लगभग दू हजार साल तक साहित्यिक परिदृश्‍य सँ लुप्‍त रहला ,मुदा हिनकर हेराएल पुस्‍तक प्रकाश मे आएल अछि ।आ हिनकर आलोचनात्‍मक चिंतन कें पूरा आदरक साथ स्‍वीकार कएल जाइत छैक ।लोंजाइनस महोदय कुशाग्रता सँ रचनाशीलता क' वाम-दक्षिण पक्ष कें स्‍पष्‍ट केलखिन आ विधा ,ज्ञान आ विषयक सीमा कें तोडि़ एक-दोसर विद्या के छूबा ,सटबा आ समेटबा पर बल देलखिन ।

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