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Friday 18 November 2011

आचार्य भामहक चिंतन


भामह क चिंतन
भामह अलंकारवादी रहथि आ संस्‍कृत आलोचना क ऐ विवाद सॅं परिचित छलाह जे काव्‍यसौंदर्यक मूलाधार शब्‍दालंकार मे होइछ वा अर्थालंकार मे ।पहिल मानैत छलाह जे काव्‍य मे चमत्‍कार क सृष्टि शब्‍द सौंदर्ये सँ संभव अछि ।दोसर समुदाय मानैत छल जे उपमा ,रूपक आदि अर्थालंकारे सँ काव्‍य शोभा होइछ ।भामह अपना हिसाबें दूनू मे समन्‍वय करबा के प्रयास केलखिन्‍ह ।
' शब्‍दार्थौ सहितौ काव्‍यम्' क द्वारा भामह शब्‍द आ अर्थ दूनू क महत्‍व पर बल दैत छथिन्‍ह ,अर्थात शब्‍द आ अर्थक सहभाव मे काव्‍यक सृष्टि होइत छैक ।य‍द्यपि भामहक चिंतन सँ ई विवाद आर गहिरायल कि काव्‍य कत' होइत छैक 1 शब्‍द मे2 अर्थ मे 3 या सहभाव मे ।ई विवाद एते प्रबल रहल कि शाहजहॉ कालीन विद्वान जगन्‍नाथ कहलखिन्‍ह 'रमणीय अर्थक प्रतिपादक शब्‍दे काव्‍य थिक ।आ वर्तमान मैथिली कविता के देखल जाइ तखन लागैत अछि जे फेर सॅ शब्‍द अपन जाल फैला रहल अछि ।
ओना आधुनिक मैथिली मे फतवा क कमी नइ छैक आ जइ कविता के प्राचीन सॅ प्राचीन आचार्य तक नवोन्‍मेष के कारणें स्‍वीकार क' सकैत छलखिन ओ कविता मैथिली मे एक झटका मे श्रीविहीन साबित क' देल जाइत अछि ,आ तहिना श्रीविहीन कविता के गौरवान्वित करए के सेहो ऐ ठाम सुदीर्घ परंपरा अछि ।

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