Followers

Sunday 6 May 2012

गजल

अहाँ के देखब जे नै आब कोना क’ रहब
दूर अहाँ छी चलल आब कोना क’ रहब

मेह झहरैत छलै नेह बरसैत छलै
यादि ओ शूल बनल आब कोना क’ सहब

दिन महिना छोडू बरख बितल कतेक
चोट देलिएै एहन आब कोना क’ सहब

बुझि सकलौ ने हम प्रीत जे तोडलौं अहाँ
आगि बिरह'क कहू आब कोना क’ सहब

सूगा मैना जकाँ छल खीसा प्रीत'क अपन
खाली पिजरा देखैत आब कोना क’ रहब

रँग कतेक छलै उमँग ओ कतेक छलै
मोन जे बेरँग भेलै आब कोना क’ भरव

धधकैत जरितौं जे हम त नीके होइतै
घूर'क आगि जेहन आब कोना क’ जरब

बाढि नोर'क नै रुकल छवि बचाउ कोना
हमर आँखि मे अहाँ आब कोना क’ रहब

No comments:

Post a Comment