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Wednesday 4 January 2012

एलियटिया कसौटी आ मैथिलीक सोना



नववर्षक प्रारंभ एकटा युगांतरकारी व्‍यक्तित्‍व सँ ।जन्‍म सँ अमेरिकी ,जीवनक 39 वर्ष सँ मृत्‍युपर्यंत इंग्‍लैंडक नागरिकता ।तर्कशास्‍त्र ,तत्‍वज्ञान ,संस्‍कृत आ पालि चारू विषय मिला के पी0 एच0डी0 दर्शनशास्‍त्र मे ।जेहने कवि ,नाटककार तेहने आलोचक ।बीतल सदीक संभवत: सबसँ बेशी महत्‍वपूर्ण साहित्‍यकार ,जिनकर कृति मे आधुनिकता आ उत्‍तरआधुनिकता दूनू अपन स्‍थान खोजैत छैक ।ई छथि टॉमस स्‍टर्न्‍स एलियट(26/09/1888सँ 04/01/1965) प्रमुख रचना
कविता:’दि लव सांग ऑफ एल्‍फर्ड प्रूफॉक’(1915),’दि वेस्‍टलैंड’(1922),’फॉर क्‍वार्टर्स’(1943) नाटक:’मर्डर इन द कैथिड्रल ‘(1935),’दि फैमिली रियूनियन’(1939), ‘दि कॉकटेल पार्टी’(1950) आलोचना:’दि सेक्रेड वुड’(1920) ,’होमेज टु जॉन ड्राइडन’(1924),’एलिजबेथेन एसेज’(1932),दि यूज़ ऑफ पोएट्री एंड दि यूज़ ऑफ क्रिटिसिज्‍म’(1933) ,’सेलेक्‍टेड एसेज़(1934) ,’एसेज़ एन्‍शेंट एंड मॉडर्न’ (1936)


रोमांटिक काव्‍यमूल्‍यक विरोधी एलियट स्‍पष्‍ट शब्‍द मे कविता के ‘सहज अंत:स्‍फूर्त कृति’ मानइ के विरोधी छथि ।ओ बलपूर्वक कहैत छथिन्‍ह जे कविक व्‍यक्तित्‍व आ जीवनगत रागद्वेषक विवेचन आ विश्‍लेषण ओकर काव्‍यक विवेचनक लेल अप्रासंगिक छैक ।हुनकर मानब ई जे कविताक रचना एकटा निर्वैयक्तिक साधना छैक ,जाहि मे कवि के कलात्‍मक उद्देश्‍यक लेल संपूर्ण आत्‍मसमर्पण कर’ पड़ैत छैक । ‘कविता कवि व्‍यक्तित्‍वक अभिव्‍यक्ति या आत्‍माभिव्‍यक्ति नइ छैक बल्कि ई व्‍यक्तित्‍व सँ पलायन छैक ,एतबे नइ व्‍यक्तित्‍वक निरंतर निषेध ।‘ मतलब बहुत साफ अछि कवि आ कविताक अद्वैतता क संबंध मे जे भारी भरकम बात सोचल आ कहल जाइत छल ,एलियट ओकरा स्‍थान पर कवि आ कविताक द्वैतता पर बल दैत छथिन्‍ह ।उदाहरण स्‍वरूप यात्री जी क’ एकटा कविता लिय’ ।कविता छैक ‘सिंदुर तिलकित भाल’ ।इलियटिया भाषा मे ई जरूरी नइ कि कवि द्वारा कविता मे यादि कएल गेल स्‍त्री ,ओकर माथ आ सिंदुर क टीक्‍का कविक पत्‍नी क टीक्‍का हो ।
निर्वैयक्तिकता निर्वैयक्तिकता बहुत किछु ‘साधारणीकरण’ के नजदीक होइतो पर्याय नइ छैक ।एलियट निरंतर कवि व्‍यक्तित्‍वक तात्विक उपस्थितिक विरोध करैत छथिन्‍ह ।हुनके अनुसार ई संभव अछि कि ओइ प्रभाव आ अनुभव ,जे व्‍यक्तिक लेल बहुत महत्‍वपूर्ण होए ,ओकर कविता मे स्‍थान नइ हो ,आ जे कविता मे महत्‍वपूर्ण हो ओकर भूमिका व्‍यक्ति मे ,व्‍यक्तित्‍व मे ,व्‍यक्तित्‍व विशेष मे सर्वथा नगण्‍य हो । एकर एकटा अर्थ ईहो छैक कि राजकमल चौधरी क कविता क बेचैनी ,असंतोष ,निराशा जरूरी नइ छैक कि ओ कविक जिंदगीक माध्‍यम सँ प्रकट भेल हो ।एलियट काव्‍यगत भाव आ कविक भाव मे अंतर करैत छथिन्‍ह ।अर्थात सुमनजी आ आरसी बाबू क कविता मे देशक लेल प्रेम सुमनजीक देशप्रेम नइ भेल ।कविक अनुभव कोनो घटना सँ प्रेरित भ’ सकैत छैक ,मुदा काव्‍यगत भावक चरित्र सृजनप्रक्रिया क समय सामान्‍य भावक विशिष्‍ट उपयोग सँ निर्मित होइत छैक ।



प्रभाववादी समीक्षाक विरोध ऐ समीक्षा पद्धति के ओ दुर्बलता आ आलस्‍य सँ परिपूर्ण मानैत छथिन्‍ह ,तथा हुनका ऐ मे व्‍यक्तिगत अभिरूचिक दबाव बुझाइत छनि ।व्‍यक्तिगत भाव सँ मुक्‍तोपरांत मूल रचना पर संकेंद्रणे आलोचना अछि ।ओ स्‍पष्‍ट कहैत छथिन्‍ह ‘आलोचना मूल संवोदनाक विकास छैक आ निकृष्‍ट आलोचना मात्र भावाभिव्‍यक्ति ‘ । एक ठाम ओ विस्‍तार करैत छथिन्‍ह ‘यदि हम कवि द्वारा बताओल सामग्री क आधार पर या कविक जीवनीपरक अध्‍ययन क द्वारा कविताक व्‍याख्‍या करबाक प्रयास करब तखना कविता सँ निरंतर दूर होयत जायब आ कोनो गंतव्‍य पर नइ पहुंचि सकब ।कविताक श्रोतक माध्‍यम सँ कविताक व्‍याख्‍या करबाक प्रयास मूल कविता सँ ध्‍यान हटा सकैत अछि आ कोनो एहन वस्‍तु सँ जोडि़ सकैत छैक ,जकरा सँ कविताक कोनो संबंध नइ हो ।‘ एक अन्‍य ठाम ओ पुन: स्‍पष्‍ट करैत छथिन्‍ह ‘हम मात्र इएह कहि सकैत छी जे कमोबेश कविताक अपन स्‍वतंत्र जीवन होइत छैक ।ओकर किछु अंश मिलिके एहन रूप ग्रहण क’ लैत छैक जे एक निश्चित क्रम मे व्‍यवस्थित जीवनीपड़क आंकड़ा सँ भिन्‍न होइत छैक ।जे अनुभूति ,विचार या जीवनदृष्टि कविताक माध्‍यम सँ प्रतिफलित होइत छैक ,ओ कविक मानस मे विद्यमान अनुभूति या भाव या जीवनदृष्टि सँ भिन्‍न होइत छैक ।‘ स्‍पष्‍ट अछि कि‍ एलियटक लेल कविताक अपन स्‍वतंत्र स्‍वायत्‍त अस्तित्‍व होइत अछि ,जकरा कविक व्‍यक्तिगत भाव आ जीवन प्रसंग सँ संबद्ध घटना सँ कोनो प्रत्‍यक्ष संबंध नइ होइत छैक ।ओ चेतावनी दैत कहैत छथिन्‍ह जे ओ आलोचक जे अतिहास या दर्शन के आलोचनाक आधार बनब’ चाहैत छथिन्‍ह ओ आलोचक नामक अधिकारी नइ छथि ।हुनका लेल आलोचना क अर्थ छैक लिखित शब्‍दक माध्‍यम सँ कलाकृतिक भाष्‍य आ निरूपण ,कलाकृतिक स्‍पष्‍टीकरण आ अभिरूचिक परिष्‍कार ।

अभिरूचिक परिष्‍कार के ओ आलोचनाक मूल प्रयोजन मानैत छथिन्‍ह ।आ ई तखने संभव छैक जखन आलोचक मे यथार्थबोध अधिक सँ अधिक विकसित हो । आलोचकक प्रमुख उपकरण छैक तुलना आ विश्‍लेषण ,जे वास्‍तविक सौंदर्यबोध के सामने आनैत छैक ।रूचि परिष्‍कारक अर्थ पाठक के ओहन काव्‍य सँ भेंट करेनए ,जकरा सँ परिचय पाठक के नइ हो आ यदि परिचय हो तखन ओइ काव्‍य के नवदृष्टि सँ देखबा बूझबाक स्थिति वा आवश्‍यकता पर ध्‍यान केंद्रित केनए ।
काव्‍यक स्‍वायत्‍तता एलियट कविता के काव्‍येतर साधन सँ देखबाक प्रयास के लताड़ए छथिन्‍ह ।ओ राजनीति ,धर्म ,नैतिकता ,मनोविज्ञान आ दर्शन सन महत्‍वपूर्ण टूल्‍स के नकारैत वैकल्पिक रस्‍ता बनबै क सुझाव दैत छथिन्‍ह ।हुनका लेल काव्‍य ऐ सबसँ अलग आ सर्वोपरि छैक ।

आलोचना रचनाकेंद्रित नइ कि रचनाकार केंद्रित
एलियट स्‍वच्‍छंदतावादी(प्रभाववादी) आलोचना आ ऐतिहासिक आलोचनाक अतिवादिता के संतुलित करैत रचना केंद्रित आलोचना पर बल दैत छथिन्‍ह ।हुनकर स्‍पष्‍ट कहब कि वास्‍तविक आलोचना क रस्‍ता कवि दिस नइ कविता दिस छैक ।कृतिक स्‍वायत्‍तता पर बल देबाक कारणें व्‍यक्तिवादिता सीमित भेलइ आ परंपरा के प्राण प्रतिष्‍ठा पड़लए ।परंपरा पर विचार करैत धर्म आ संस्‍कृतिक अवदान सेहो सामने आयल ।


परंपरा आ व्‍यक्तिगत प्रज्ञा (tradition and the individual talent) यूरोपीय परंपरा पर विचार करैत एलियट मानैत छथिन्‍ह कि प्रत्‍येक राष्‍ट्र ,प्रत्‍येक प्रजातिक अपन केवल सर्जनात्‍मके नइ आलोचनात्‍मको मानस होइत छैक ।कोनो रचनाकारक महत्‍वक प्रतिपादन करैत आलोचक प्राय: वैयक्तिक विशिष्‍टता के देखयबाक प्रयास करैत छथिन्‍ह ,मुदा ठीक सँ देखला पर कोनो कविक श्रेष्‍ठ आ सर्वथा वैयक्तिक पक्ष सेहो ओएह कविता होइत छैक ,जाहि मे पूर्ववर्ती कविक प्रभाव प्रभावशाली ढ़ंग सँ व्‍यक्‍त भेल हो ।एलियट स्‍पष्‍ट कहैत छथिन्‍ह जे ‘व्‍यक्तिगत प्रज्ञा’ परंपरा सँ विच्छिन्‍न वस्‍तु नइ थिकइ ।परंपरा सॅं गंभीरता सँ जुड़ला क बादे कवि अपन वैयक्तिक सामर्थ्‍य के अधिक प्रभावी ढ़ंग सँ व्‍यक्‍त क’ सकैत छैक ।


रचनाकारक लेल परंपरा श्‍वास क जेंका सहज ,स्‍वाभाविक ,अनिवार्य आ नैसर्गिक क्रिया छैक ।किछुओ पढ़ैत लिखैत सोचैत सुनैत परंपराक गुण दोषक अनुभव होइत चलि जाइत छैक ।अभिव्‍यक्ति मे कखनो ई मौन होइत छैक आ कखनो मुखर ।कखनो टकराहट संघर्षोन्‍मुख होइछ ,कखनो नइ ,मुदा परंपरा आ रचनाकारक संघर्ष संवाद सदैव चलैत रहैत छैक । परंपराक प्रति अनुराग अंधानुकरण नइ छैक ।अंधानुकरण सँ मौलिकता नष्‍ट भ’ जाइत छैक ।परंपराक व्‍यापक अर्थवत्‍ता त’ सृजनकर्मक नवीनता मौलिकता मे प्रतिफलित होइत छैक ।एलियट बलपूर्वक कहैत छथिन्‍ह ‘परंपरा के विरासत के रूप मे प्राप्‍त केनए संभव नइ ,ओकरा प्राप्तिक लेल कठोर तप साधना वा श्रम आवश्‍यक छैक ।
मैथिली मे कोनो एहन लेख लिखेबाक चाही जइ मे यात्री जी ,सुमनजी आ आरसी बाबूक कविता मे परंपराक स्‍वरूप आ सृजनक संघर्षक चित्रण हेबाक चाही ।
एलियटक लेल परंपरा आ इतिहासबोध एके ।ऐ बोध मे अतीतत्‍व कम आ वर्तमानक कार्यभाग बेशी छैक ।तें एलियट ने केवल होमर वर्जिल बल्कि समस्‍त यूरोपीय लेखन पर नजरि राखैत छथिन्‍ह ,बल्कि प्राचीन संस्‍कृत आ पालिक सांस्‍कृतिक अवदान कें सेहो स्‍वीकारैत छथिन्‍ह ।मैथिली साहित्‍य मे अतीत क दिसि एतेक मोहक आ विवेकयुक्‍त नजरि निश्चित रूपेण यात्री आ हरिमोहन झा मे अछि ।परंपरा हुनका लेल गाबै वला गीत ,टेक,आ बजबइ वला ढ़ोल नइ छैक ,परंपरा हुनका लेल ओ महासागरीय कसौटी छैक ,जइ मे ओ डूबइ छथिन्‍ह आ बेरि बेरि डूबि के तमाम रत्‍न के बाहर निकालैत छथिन्‍ह ।
एलियटक लेल परंपरा कोनो मृत वस्‍तु नइ छैक ,बल्कि एकटा सातत्‍य आ निरंतरता छैक ।ओ वेगपूर्ण प्रवाह जे प्राचीन साहित्यिक सांस्‍कृतिक धरोहरक नीक तत्‍व सँ वर्तमान के आलोकित करैत छैक ।ऐ दृष्टिए परंपराक विस्‍तार देश आ काल दूनू मे होइत छैक ।
कोनो कलाकारक अर्थवत्‍ता क निर्धारण पूर्ववर्ती कलाकार या वर्तमान कलाकारक सापेक्षता मे संभव छैक ,नइ कि अकेले मे ।साम्‍य वैषम्‍य, मौलिकता आ हस्‍तक्षेपी शक्ति क आधार पर पूर्ववर्ती परंपरा सँ ओकर तालमेल बैसेनइ अपरिहार्य छैक ।कोनो कलाकार अपन शक्ति सँ परंपरा आ मूल्‍यक समुद्र मे एकटा कंकड़ फेकइ छैक आ अतीत आ वर्तमानक अनुक्रिया प्रारंभ भ’ जाइत छैक ।
एलियटक लेल अतीतक ज्ञान हेबाक चाही ,मुदा एतबे कि ओ कविक चेतना क आनंदित करए ,विवेक दए ,बोझिल नइ बनबै ।प्राय:अतीतक अतिशयता काव्‍यसंवेदना के निर्जीव बना दैत छैक या प्रभावहीन ।कविक लेल अतीतक चेतना विकसित केनए जरूरी ,आ ई काज पूरा जिनगी चलैत रहैत छैक ।ऐ बात पर चर्चा हेबाक चाही कि कालिदास आ विद्यापतिक स्‍मृति यात्री साहित्‍य के कतेक प्राणवान बनाबै छैक ,आ मैथिली मे एहन कोन कोन साहित्‍यकार छथि जे अपन अतीत प्रेम क बोझ सँ बेशी दबल छथि ।






मूर्त विधान (objective correlative) ’हेमलेट एंड हिज प्रॉब्‍लम्‍स’ मे एलियट नाटक के असफल मानैत छथिन्‍ह ।हुनकर तर्क अछि कि ओइ मे नियोजित बाह्य वस्‍तु व्‍यापार, भाव संवेदन के जगएबाक लेल अपर्याप्‍त छैक ।एलियटक ई अवधारणा भारतीय काव्‍यशास्‍त्रक ‘विभावन व्‍यापार ‘सँ एकदम मिलैत जुलैत छैक । एलियट मानैत छथिन्‍ह कि भाव मूलत: अमूर्त छैक ,तें अभिव्‍यक्तिक लेल कोनो मूर्त वस्‍तु या स्थितिक सहायता जरूरी छैक ।भाव आ वस्‍तुक बीच एहन संबंध हेबाक चाही कि वस्‍तुक देखिते ओ भाव जागि जाइ ।ओना एलियट सँ पहिले यूरोपीय आलोचना मे सेहो ऐ पर विचार भेल रहए ।अरस्‍तू आ प्रतीकवादी दूनू ऐ पर विचार करैत छथिन्‍ह ।

संवेदनशीलताक साहचर्य (dissociation of sensibility) एलियटक स्‍पष्‍ट मान्‍यता छैक कि महान कवि आ महान काव्‍य मे वैयक्तिकता आ परंपरा ,समकालिकता आ चिरंतनता ,भावुकता आ बौद्धिकता ,भाव आ विचार ,कथ्‍य आ रूपक गंभीर सामंजस्‍य रहैत छैक ।ऐ बहुतात्विक पदार्थक एको चीज कमजोर भेला सँ काव्‍यक उत्‍कर्ष मे बाधा पहुंचैत छैक ।निश्चित रूपेण महान काव्‍यक महानता काव्‍यक अंतर्दृष्टि(विजन) पर निर्भर होइत छैक ।एलियट सँ पहिले कॉलरिज ‘विरूद्धक सामंजस्‍य’(रिकॉन्‍सीलेशन ऑफ अपोजिट्स)पर विचार करैत मानैत छथिन्‍ह कि काव्‍य मे ई सामंजस्‍य कल्‍पने करैत छैक ।एलियट महोदय कल्‍पना देवी क स्‍थान पर ‘संश्लिष्‍ट संवेदनशीलता’क चर्चा करैत छथिन्‍ह ।इएह प्रक्रिया मे कविक संवेदना मे ह्रदय आ बुद्धि एकीकृत भ’ जाइत छैक ।भाव आ विचार क ऐ साहचर्य के एलियट विचारक प्रत्‍यक्ष ऐन्द्रियबोध या संवेदन मे विचारक रूपांतरण कहैत छथिन्‍ह ।संवेदना भाव आ विचारक योग होइत छैक ।कमजोर काव्‍य मे भाव आ विचारक एकरूपता विघटित होइत काव्‍योत्‍कर्ष के प्रभावित करैत छैक ।एलियट एकरे संवदेनशीलताक असाहचर्य कहैत छथिन्‍ह ।अंग्रेजी कविता मे ऐ साहचर्यक दर्शन एलियट शेक्‍सपीयर मे करैत छथिन्‍ह ।
काव्‍यभाषाक प्रश्‍न प्रत्‍येक देशक अपन काव्‍य आ काव्‍य चरित्र होइत छैक ,जइ मे ओइ समाजक संवेदनशीलताक परिष्‍कार आ चेतनाक विस्‍तार बूझल जा सकैत छैक ।काव्‍यक भाषा बेशी संश्लिष्‍ट ,स्‍थानीय आ संस्‍कृतिमूलक होइत छैक ,तें साहित्‍य मे राष्‍ट्रीय अस्मिताक सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण वाहक पद्य होइत छैक ।अनुभूति आ संवेदनाक सर्वाधिक समर्थ अभिव्‍यक्ति आम जनताक आम भाषा मे होइत छैक ।भाषिक संरचना ,लय ,ध्‍वनि ,मुहावरा(कहवैका) सभ मिलि के भाषाक प्रजातीय चरित्र के स्‍पष्‍ट करैत छैक ।कविक रूप मे पहिल दायित्‍व ऐ प्रजातीय भाषाक विस्‍तार ,संस्‍कार आ परिष्‍कार छैक ।काव्‍यभाषा आमजनता मे प्रयुक्‍त भाषा पर आधारित होइत छैक आ महान काव्‍य भाषा के एते विकसित करैत छैक कि जटिलतम भाषा क अभिव्‍यक्ति तक सहज भ जाइ छैक ।

एलियटक चिंतन के भारतीय संदर्भ मे दू तरहक अतिवाद सँ खतरा छैक ।किछु लोक सब प्रश्‍नक जबाव भारतक प्राचीन गौरवे सँ दिय’ चाहैत छथिन्‍ह ,हुनका लेल साहित्‍य सर्वथा चिरंतन अछि ,किछु लोक प्रत्‍येक बाहरी तत्‍वक चमक पर मरिमिटेबा लेल सदिखन तैयार रहै छथिन्‍ह ।हमरा उपयोगी चीज लेबा सँ मतलब अछि , ई देखबा मे रूचि नइ कि एलियट कत’ भारतीय काव्‍यशास्‍त्र ,कत’ अरस्‍तू ,कत’प्रतीकवादी अग्रज आ कत’ अपन समकालीन भाए बंधु सँ अनुप्राणित छथि ।एलियटिया चिंतन मे निस्‍संदेह एहन तत्‍व छैक ,जे साहित्‍य के निर्मल ,उच्‍चतर ,गंभीर आ प्राणवान बनबै छैक ।

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