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Monday 15 August 2016

वर के मिललै कनियां गहना के संग
पूरा खतियान कबाला भरना के संग
केेओ देखलै बुझलै गमलै केओ
देखैै सुन्‍दर सपना 
 अपना के संग 
  
झाबाद रहै ,मिश्राबाद रहै
यादबाद रहै ,मंडलाबाद रहै
आ सिंह सँ पसवान के सुसमाद रहै
तखने मिथिला जिंदाबाद रहै
ओ कत' गेलखिन ?
सुर आ असुर दूनू के देलासा दए वला
कविता ,कहानी ,आलोचना
ब्‍लॉग ,पत्रिका ,किताबादि सँ सम्‍पुष्‍ट
ओ युवा मनीषि कत' चलि गेलखिन
हुनकर अशुभ वाणी अमंगलकारी छाया
नइ देखाइछ त' मोन किदनदन कर' लागैत अ‍छि
ऊ छथिन चालि चलै लेल
आ हमहूं छी हुनकर चालि बिगाड़बाक लेल
हे ऊप्‍पर सँ हरियर आ अंदर सँ सोंसि-घडि़यार
अहांक फू-फा नइ सुनै छी त' कान नोच्‍च' लागैत अछि
अहांक दुष्‍ट सोच अछि
तखने हमहूं छी
अपने कत्‍त'छी धियान लगेने ?
जेना कटलका पर मरीच-नोन छक्‍क सन
कहबौ त' लागतौ भक्‍क सन-भक्‍क सन
बहुत किछु विदा भ' गेल रहै
आ किछु विदा हेबाक लेल तैयार रहै गेट पर
सबसँ पहिने मुंहक मैथिली
आ ईसरगत,डरकडोरि ,बद्धी,माला
लागैत रहै नइ रहतै देह पर कुनो सूत
खरखर सुभाव क' स्‍थान पर
बरसैत रहै चाशनी वला मौध
आ जे मोन मे रहै
से ठोर पर नइ रहै
तमाम आदर्श नुका रहलै
भगवत्‍ती घरक कुनो ताखा मे
सपना सब भकुआयल -भूतिआयल
अतृप्‍त ईच्‍छाक धार बहैत रहै पूरा देह
हरियर खूब हरियर रहै
आ लाल खूब टक्‍क लाल
मुदा हरियर जे कनेक करियाइत रहै
आ लाल जे खूनमाखून होइत रहै
सेहो देखि लेलियै ऐ बेर गाम मे
तहिना ऊज्‍जर मे खूब टीनोपाल रहै
आ सेठबा सब खूब मालामाल रहै
मुदा उजरका आब बेदाग नइ बचलै
सेहो लिख लेलियै ऐ बेर गाम मे
पीयर ने हरिदैल रहै ने बसंती
पाकल जे सडि़ गेल रहै
से चखि लेलियै ऐ बेर गाम मे.....

मित्‍ता

तोहर करनी पर आबै छौ घीन मित्‍ता
मीत कहितो लजाय छौ जमीन मित्‍ता
जिनगी भरि सेवलियौ सोन- चानी जँका
कोना कहियौ जंग लागल छें टीन मित्‍ता

मीत्‍ता-2


एना दोस्‍ती के जुनि गीज मीत्‍ता
कखनो दुश्‍मनो पर पसीज मीत्‍ता
ढ़ोलहा देने कसम किरिया केहन
दम धेनाइयौ कुनो छै चीज मीत्ता
एना जे करबै दर्दक विज्ञापन
कम कहनैये छै तमीज मीत्‍ता

खट्टा चूक्‍क

दोसरक खु‍शी देखिते हुनकर मोन भ' जाइ छैन खट्टा चूक्‍क
दोसर के मुसकियाइत हुनकर दिल मे उठै छैन हुक
दोसर के हरियाइत देख हुनकर पानि किएक सुखैत छैक
किएक ओ सुखा के कसौंझी भेल जाइत छथिन
पूरा टोल गीत गाबैत रहै आ हुनकर दांत कोथ रहै
पुरा गाम खुशी सँ हरियर रहै केवल हुनकर मोन पतैली जँका कारी भेल रहै
हयौ नीच्‍चे गिरबाक होए त' भरल-पुरल गिरू
झूल भ' गिरबै त' किओ छुअ
त नइ छुअत.....
गारि देनाए कला दिएनए बड़का कला रहै
कखनो जीतै ओइ टोल वला कखनो अइ टोल वला रहै

जत्‍ते खोड़बौ ओत्‍ते गड़तौ

जत्‍ते खोड़बौ ओत्‍ते गड़तौ
गरमी मे आगि जाड़ मे बर्फ सन लागतौ
नोचतौ नछोरतौ भमोरतौ ने फालतूू
जत्‍त' जत्‍त' छूतौ ओत' ओत' दागतौ
भगेतौ खेहाड़तौ ने जालेे बिछेतौ
बिन कत्‍ते दूरे सँ गत्‍तर-गत्‍तर काटतौ

भाषाक कालाबजार

हजार-लाख मे एकोटा ने ईमानदार रहै
सौ मे सौटा विधायकजीक कोटेदार रहै
भीजल चीन्‍नी रहै गहुम बोरापार रहै
जेहल मे जीभ पेट थाना मे गिरफ्तार रहै
दै मुट्ठी सॅं लै लोपेलोप एहने ई कारोबार रहै
ऐ मिलावट –कमतौली क सब हिस्‍सेदार रहै
मिलतै छल एक धुर अप्‍प्‍न जमीन
सिमरिया सँ बिस्‍फी तक भाषाक कालाबजार रहै

लक्ष्‍मी चौधरी ,करियनक सम्‍मान मे

ऊ जे क' देलखिन उठानी मे
की तू क' सकबीहीं जवानी मे?
कोन जोकरक तोहर चरचा एे ठाम
बहुत दम छै हुनकर कहानी मे
की भाव की अभाव की परभाव कहियौ
बूझि पेबही ऐ जिनगानी मे?

अप्‍पन फ्यूयर ब्राईट रहै

गनर रहै वामा दहिना माथ पर ललबत्‍ती टाईट रहै
देश गेलै चरी करै लेल बस अप्‍पन फ्यूयर ब्राईट रहै

प्रियदर्शिनी जी

प्रियदर्शिनी जी ,'नवकविता' मे नव भेनए आ कविता सेहो भेनए अभीष्‍ठ ।अहां कविता मे सब तरहक सदिच्‍छा आ शुभकामना व्‍यक्‍त करबाक लेल स्‍वतंत्र छी ,मुदा शब्‍द आ शब्‍दक्रम अहांक हेबाक चाही ।ऐ तरहक अतिलोकप्रिय शब्‍दावलीक सहयोग सँ ई मौलिकता नइ आबैत छैक-
बदलि सकैत छी नभ आओर धरा कें, विश्वक मानचित्र मे
हम छी त' युग अछि आओर इतिहास जग मे
हम करैत छी आह्वान सभ सं कल्पनाक संग मे
विश्वक एक कोटि एक जाति एक रूप मे
ई मंगलकामना इतिहास आ कविता मे अहां अपन शब्‍दक्रमक संग व्‍यक्‍त क' सकैत छियैक ,कोनो आन व्‍यक्तिक शब्‍द क्रम सँ नइ ,समाज मे छिडि़याएल ,बहारल विभिन्‍न विचार मात्र कें झारू सँ समेटला सँ नइ ।
तहिना अहांक नव व्‍यक्तित्‍वक परिचय अहांक व्‍यक्‍त बिंब आ प्रतीके सँ होयत ।बिंब आ प्रतीक जत्‍ते टटका ,सूक्ष्‍म आ विषय सँ संबंधित हेतै ,तत्‍ते कविता कविता जँका हेतै ---
जानकी, मंदोदरी आ उर्मिलाक त्याग सन
माँ, बेटी, बहिन, पत्नी आ प्रेमिकाक स्वाभाव सन
जानकी ,मंदोदरी इतिहासक बहुप्रयुक्‍त पात्र ,प्रतीक ।ऐ प्रतीक कें मांजिए के , प्रतीक क' संग प्रयोग क' के अहां अपना सकैत छियैक ,अन्‍यथा ई सामान्‍य प्रभाव उत्‍पन्‍न करत नइ कि वयंजनात्‍मक ।
फेसबुक पर दू सौ लाईक मिललाक बाद ई बात ,सुझाव नीक नइ लागैत छैक ,मुदा आर नीक कविताक संभावनाक लेल शुभकामनाक संग

दीपचंदजीक आर्थिक नीति

दीपचंदजी अपन लछमन रेखा अपने खीचै छथिन ,बहुत पहिलैऐ सँ ।आ गरीबी ,अमीरी ,खरचा ,कपड़ा-लत्‍ता,सिनेमा-सरकस सबहक लेल नव-नव पालिसी ।जेना खरचा लिय' त' हुनकर साफ नीति ई कि पूरा-पूरा बचेनए संभव नइ तें किछु किफायती बननै बेशी उचित ।तें ऊ 'डव' साबुन नइ लाईफबाय लगबै छथिन ,एक दिन छोडि़ के ,आइ वामा दिस ,काल्हि दाहिना दिस ।मकान पूब आ उत्‍तर दिस सँ प्‍लास्‍टर आ दू दिस ओहिना ईटा वला ,किएक त' ई दूनू दिशा पछुऐत मे रहै ।कॉफी पीबाक बदला चाय बनलाक बाद एक चुटकी कॉफी चाय मे राखनै ।बासमती चाउरक बदला मे ओकर खुद्दीक भात ,जे सौंस चाउर जँका गमकै छैक,आ राहडि़क दालिक बदला मे पचमेलिया दालि ।पूजाक परसाद मे पंचमेवाक बदला लताम,खीरा ,चिनियाबदाम,मिश्री आ केरा ।आ मानक रहै पूरा गाम के हकार देबाक त' दैत रहथिन टोल कें...........