राजकमल चौधरीक जन्मदिन पर बहुत रास कवि ,साहित्यिक आ मिथिलाप्रेमी हुनका यादि क' रहल छथिन ,मुदा कि राजकमल कें पूरा निष्ठा आ समर्पण सँ यादि कएल जा रहल अछि ? कि साहित्य आ मैथिली साहित्य राजकमलक अवदान कें ह्रदय सँ स्वीकार केलकै? कि मैथिली साहित्य राजकमल चौधरीक सिद्ध कएल प्रमेय सँ आगू चललै ?कि मैथिल समाज साहित्यिक चेतनाक स्तर पर दू सदी पहिलुुके दुनिया मे त' नइ छैक ?लागै त' नइ छैक कि मैथिली साहित्य राजकमल चौधरी कें जज्ब करैत आगू बरहैक लेल प्रयत्नशील छैक ।मुख्यधाराक बहुलांश एखनो 'सस्ता लोकप्रियता' क कहाओत कें पूर्णत: आत्मसात करैत आगू चलि रहल छैक आ राजकमल द्वारा मैथिली साहित्य लेल कहल गेल सब बात दुर्भाग्यजनक रूप सँ एखनो शत प्रतिशत सत्त छैक । ;यद्यपि प्रतिभाशाली साहित्यिकक एकटा पीढ़ी सक्रिय छैक ,मुदा ऐ पीरहीक एकटा गुट या किछु कवि (नाउ लेेनै ठीक नइ) अपन वैचारिक शून्यता सँ भरल छथिन ,ओ किमहरो घूसकि सकै छथिन ,आ एकटा समूह सरल (सड़लो बूझबै त' कुनो खराब नइ )वैचारिक आ शैल्पिक सुविधाक उपयोग करैत मस्त छथिन ,यद्यपि दूनू खूब नामवर छथि ।अस्तु ,आब आबू ठाम पर....... अहां लेल सभागाछी क' जे महत्व होए ,राजकमल चौधरी एकरा एना यादि करैत छथिन----
सभागाछीमे आब लोक नहि
बैसत माछी
राजकमल चौधरी परम्पराक नाम पर घमर्थन ,पाखण्डबाजी ,असृजनशीलता ,निरर्थक पुनरावृत्तिक विरोधी छलखिन ,आ हिन्दी मे त' किछु प्रतिभाशाली लोकनि पहिले सँ सक्रिय छला ,मुदा मैथिली मे यात्री जी क' बाद राजकमल विशेष दायित्व आ भूमिकाक निर्वहण केलाह । पारंपरिक कविताक प्रति राजकमलक दृष्टि ऐ कविता मे स्पष्ट अछि---
हे शब्दक पुहुप-माल,
हे कविता कमल-काल,
भाषा मन्दिरक देवी पर चढ़ि बनि गेलाह तोँ निर्माल
आब तोहर नइँ आवश्यकता, एहि मन्दिरसँ टरि जाह
बैसत माछी
राजकमल चौधरी परम्पराक नाम पर घमर्थन ,पाखण्डबाजी ,असृजनशीलता ,निरर्थक पुनरावृत्तिक विरोधी छलखिन ,आ हिन्दी मे त' किछु प्रतिभाशाली लोकनि पहिले सँ सक्रिय छला ,मुदा मैथिली मे यात्री जी क' बाद राजकमल विशेष दायित्व आ भूमिकाक निर्वहण केलाह । पारंपरिक कविताक प्रति राजकमलक दृष्टि ऐ कविता मे स्पष्ट अछि---
हे शब्दक पुहुप-माल,
हे कविता कमल-काल,
भाषा मन्दिरक देवी पर चढ़ि बनि गेलाह तोँ निर्माल
आब तोहर नइँ आवश्यकता, एहि मन्दिरसँ टरि जाह
एतबे नइ विद्यापति कें संबोधित एकटा कविता मे अप्रत्यक्ष रूप सँ तत्कालीन समाज आ साहित्यिक वर्ग के संबोधित करैत कवि कहैत छथिन----
रतिविपरीत आ रतिअभिसारक लिखने छह कत गीत
आब न शृंगारक जुग छइ, ने छइ कतउ सिनेह पिरीत
युद्ध,अकाल, बाढ़ि, रौदीसँ अछि जनसमाज भयभीत
कतउ ने भेटय शान्ति छनो भरि, किओ ने भेटय मीत
रतिविपरीत आ रतिअभिसारक लिखने छह कत गीत
आब न शृंगारक जुग छइ, ने छइ कतउ सिनेह पिरीत
युद्ध,अकाल, बाढ़ि, रौदीसँ अछि जनसमाज भयभीत
कतउ ने भेटय शान्ति छनो भरि, किओ ने भेटय मीत
राजकमल चौधरी द्वारा रचित साहित्य मे सँ किछु खास राजकमलिया शैली ,प्रतिभा आ दृष्टि सँ डूबल कवितांश..........
1
कत’ जाउ ? की करू ??
रावण बनि ककर सीताकें हरूं ?
रावण बनि ककर सीताकें हरूं ?
2
एकटा रसिक स्त्री हमरासँ अनचिन्हारि
हमरा हृदय कारी अन्हारमें पियासल पाखी जकाँ अपस्याँत,
ताकि रहल अछि पानि
हमरा हृदय कारी अन्हारमें पियासल पाखी जकाँ अपस्याँत,
ताकि रहल अछि पानि
3
सभटा अंकित अछि एहि लाल बहीमे
एहि लाल बहीमे सभटा इच्छा, समग्र वासना
जे जतबा अछि जकरासँ लेन-देन
जे रखने छी हेम-नेम
एहि लाल बहीमे सभटा इच्छा, समग्र वासना
जे जतबा अछि जकरासँ लेन-देन
जे रखने छी हेम-नेम
(बही-खाता
4
काव्यक शवपर अहाँक मैथुनी आसन हम सभ नहि छीनि लेब!
मृदु, ललित स्वरेँ विविध रागमे मादक अलापसँ
अहाँ गबै छी, से मधु-गायन नहि छीनि लेब!
पुरखा छलाह मैथिल-कोकिल विद्यापति महाराज
विपुल नितम्ब अति बेकल भेल, पालटि तापर कुन्तल देल
उरज उपर जब देहल दीठि, उर मोरि बइसल हरि करि पीठि
अहाँ लाज जुनि करू, कि सदिखन काव्यक फोलू कंचुकी, नीवी,
दूरहिसँ हम्मर शत-शत प्रणाम, हे महाकवे कवि-सम्मेलन-जीवी!
मृदु, ललित स्वरेँ विविध रागमे मादक अलापसँ
अहाँ गबै छी, से मधु-गायन नहि छीनि लेब!
पुरखा छलाह मैथिल-कोकिल विद्यापति महाराज
विपुल नितम्ब अति बेकल भेल, पालटि तापर कुन्तल देल
उरज उपर जब देहल दीठि, उर मोरि बइसल हरि करि पीठि
अहाँ लाज जुनि करू, कि सदिखन काव्यक फोलू कंचुकी, नीवी,
दूरहिसँ हम्मर शत-शत प्रणाम, हे महाकवे कवि-सम्मेलन-जीवी!
(तथाकथित परम्परावादीक प्रति)
शत शत नमन
शत शत नमन
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