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Sunday 26 January 2014

चंदन कुमार झा आ समकालीन मैथिली कविता



समकालीन मैथिली कविता मे चंदन कुमार झा अपन साहस ,अपन तर्क आ अपन चेहराक साथ मजबूती सँ छथिन ।विषमताक इतिहास मे 'हम' आ 'तु' बहुत पुरान रूपक बनबैत छैक आ चंदन जी एकरा नया रूप दैत छथिन-


हमरे चूलहा
हमहीँ जारनि
झरकि रहल अछि
हमरे मन
हमरे हितमे
हमर घरमे
बरकि रहल
ओकर अदहन !

ओक्कर सिदहा
ओकरहि घरमे
बढ़ा रहल
ओक्कर अन्न-धन
बढ़ल एम्हर
हमर दरिद्रा
ओकरा लेखेँ
अछि धनिसन !!

ई तर्क कखनो-कखनो कमजोर होइत 'बाबाक बेंत' सँ डराइत-डराइत लोकप्रिय तुक्‍काजी दिस ससरैत छैक ,तखने फेर मजगूत होइत एना समाप्‍त होइत छैक-

बाबाक बेंत
सड़ैत अछि
गोठुल्लामे

बाबाक बेंत
जड़ैत अछि
चूल्हामे

यैह तर्क आर मजगूत होइत 'अधकट्टी चान' मे अपन कवित्‍वक आधार कें चौड़गर करैत अछि ।कविताक प्रारंभ विवरण सँ होइत छैक ,मुदा चंदन जी जल्दिए कविताक धार कें कविताई दिस मोडि़ दैत छथिन-

रहैत छलैक चूल्हिक पछुआरमे
चिनबारपर, लाबनि उपर डिबिया बरैत
चूल्हिक उपर चारमे
खोंसल रहैत छलनि बाबाक लाठी
तेल पिबैत, ताव सेकैत
नानी धरबैत छलीह चूल्हिमे पजार
तामा आ कठौती आगाँमे रखने
लगबैत छलीह घरक भूखक हिसाब

चिनवार कि मोख लग हमरा
रहैत छल प्रतिक्षा
कखन लगतनि नानीकेँ बेसाह
बहार करतीह लगजोरीक कैञ्चा
कि डाबासँ बेच
कूदि कऽ जाएब दोकान
भेटत नफा'क लेबनचूस
लाल-पीयर-हरियर अधकट्टी चान

तहिना एकटा कविता छैक 'मरू प्रदेश मे' ,कविताक प्रारंभ एना छैक कि ई अनुमान कएल जा सकैत छैक कि कवि शब्‍द-मैत्रीक द्वारा शिल्‍पपक्ष दिस झुकल छैक ,मुदा ई अधकपारी होयत यदि सौंस कविता कें एकसाथ नइ देखबै -

डग-डग पुरनिक पात सन
विस्तृत नील-अकासमे
भोजघारा'क अरबा भात जकाँ
चमकि रहल पुर्णिमाक चान
घृत-मिश्रित
'तुलसीफूल'क सुगन्धि जकाँ
ओस-सिक्त तुलसी-फूलक गमगमी
पसरि गेल सगरो गाम,
घरहि-घर, सगरो अकासमे
बिझौ कराय आयल
नोतहारीक जकाँ आबि रहल तरेगन
दहोदिशिसँ भोजघारा दिस

चान मलिन भेल जा रहल अछि
जेना बसिया गेल हो भात
अन्हार आ इजोतक संधिस्थलपर
ठाढ़ अछि भोरुकबा
जेना ठाढ़ हो भरारी
बन्न भरारक मोखपर साकांक्ष

कोनो अकालग्रस्त, भीषण देशमे
अन्न बेत्रेक टुटैत साँस सदृश
बिला रहल अछि एक-एक टा तरेगन
भोजक उगारा फेकैत काल
घरबारीक मुखमण्डलपर प्रातमे
छिटकैत रहैत अछि जहिना
सौजनियाक 'यश'क गौरव,रक्ताभ हँसी
हँसि रहल अछि सूर्य
पसरि गेलैए तहिना लालिमा
एहि मरुप्रदेशमे 


विसंगति आ विडम्‍बना कें केना काव्‍यशिल्‍प बनबी ,एकरा खूब नीक जँका जानैत चंदन जी प्रशंसा आ निंदाक पारंपरिक रूपक के तियागि कें गाम कें देखैत छथिन -

कुहेसक ओहिपारमे
हमर गाम अछि
जतय एखनो
चमकैत हेतथि सुरूजदेव
कि पसरल हेतैक सगरो
हुनके सन सुदिप्त,सुसुम,
घूरक धधराक इजोत,
गरमौने होयत गामकेँ
आ'कि पसरि गेल हेतैक
गामक दोग-सानि धरि
उदीयमान पुर्णिमाक चानसन
बोरसिक अंगोरक गुलाबी आभा
छिटकिकऽ हमरे गौंआक ठोढ़सँ
जगमगौने होयत दंत-दीपमालिका
गामक अंगना-दलानकेँ

कुहेसक एहिपारमे
हम छी
बोझक-बोझ कपड़ामे नुरिआयल
कारखानाक धुँआमे फड़फराइत
नाक-मुँह झँपने भठ्ठीलग बैसल
अभावक आगि मिझेबा हेतु
किछु-बुन्न घामक जोगारमे
एहि सर्द शहरी अन्हारमे
बजारे-बजार बौआइत, थर-थराइत

जखन-जखन अपन माथक घाम
पोछि फेकैत छी कारखानाक भठ्ठीमे
कि करैत छी
अभावक आगि मिझेबाक प्रयास
तखन-तखन
चिमनीक धुआँसँ कि
हमरे चूल्हिसँ बहराइत धुआँसँ
हमरा आ हमर गामक बीचक कुहेस
आओर घनघर भऽ जाइछ
अपनहि मुँहक भाफसँ
धुंध आच्छादित भऽ गेल अछि हमर बाट
कुहेसक एहिपारमे
हमर गाम हँसैत होयत हमरापर
कुहेसक ओहिपारमे


चंदन जी 'नव गति' 'नव लय'क कवि छथिन ,कखनो-कखनो हुनको धियान 'प्रतिष्ठित प्राचीन' पर जाइत छैन ,मुदा प्रथमद्रष्‍ट्या अद्भुत लागितो किछ कविताक स्‍थान एकटा प्रलंब समै-काल मे महत्‍वपूर्ण नइ-

मृगनैन कटारक तिक्ख धार
धँसि गेल करेजक आर-पार
अपरूप रूप-यौवनक भार
विधिना केर गूहल चित्रहार

ताहिपरसँ ई नख-शिख श्रृंगार
सौरभ सिंचित पहिरन-पटोर
बौराय देलक मन-भ्रमराकेँ
मलयानिल सन साँसक झकोर


(सब कविता चंदन कुमार झा जीक फेसबुक वाल पर सँ लेल गेल अछि ।)

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