दूनू कवि भोरूका टहलौनी मे एहन रस्ता खोजि लेलखिन ,जइ रस्ता मे केओ नइ देखाइ ।कखनो काल कोनो सरलहिया कुकुर ,कखनो कोनो कबाड़ी तेजी सँ आबादी दिस बढ़ैत ,बस यैह हलचल ।ने एक्कोटा अखबार वला कऽ सायकिल ने इसकुलिया बस क धूम-धक्कर ,कखनो-कखनो हनुमान मंदिर सँ भजन कऽ आवाज आबै ।भजनो नबका धुन पर ,कविगण ऐठाम निचेन सँ अपन पेट पर ढ़ोल बजा सकैत छला ,पेटे नइ ,पीठो दिस आ नीच्चों ,ऐठाम के देखए वला ।आ ऐठाम खूब नीक जँका विरोधी पर टिप्पणी कएल जा सकैत छलै आ रंगबिरही गारि सेहो ।
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