Monday 25 March 2013

बौहमारा देश

बौहमारा देशक कत्‍ते स्‍तुति करी
कत्‍ते चरण पखारी बेटीमारा देशक
कोन हाथे आरती उतारी बेटीबेच्‍चा देशक
कोना पूजी बांहि कंठ दाबैवला के
ओइ हूनर पर लिखता कविता फलां बाबू
कि कोना लाश के जल्‍दी जराबल जाए
आ ओइ सामाजिकता पर दिल जीतता फलां बाबू
कि बौहमारा सभ कें कोना बचाबल जाए थाना-पुलिस सँ
आ फलां बाबू खन हँसैत खन कानैत साबित क' देता
कि फलां गाम वाली क' मरनै कत्‍ते जरूरी छलै
ऐ खानदान ,गाम आ समाजक लेल
ओकर हँस्‍सी ,ओकर बात बेवहार
चालि-ढ़ालि कत्‍ते अगलगौन छलै
ओकर आंचर ओकर घोघ
ओकर बोली ओकर डेग
 टपि के कहिया ने छोडि़ देलकै गामक सीमान

Saturday 23 March 2013

मैथिलीक दुश्‍मन नं0 3

संस्‍कृत आ अपभ्रंशक दिशागत बोध कें मैथिली खूब नीक जँका धारण केलकै ।अपभ्रंश आ अवहट्ट मे दिशाक आधार पर तीन टा या चारि टा अंतर मानल गेलै ,मैथिली मे सेहो कतेको क्षेत्रभेद रहलै ,मुदा मुख्‍य अंतर उत्‍तरबरिया आ दक्षिणबरिया रहलै ।दक्षिणबरिया मैथिली के सदिखन निकृष्‍ट ,बज्‍जरसदृश आ असाहित्यिक मानल गेलै आ ई बोध एहन जबर्दस्‍त रहलै कि दक्षिणक कतेको सिद्धहस्‍त लेखक अपन गाम मे बाजै वला मैथिली के तिरस्‍कृत करैत किताबी मैथिली के प्रोत्‍साहित केलखिन ।सुमन जी ,आरसी बाबू आ हरिमोहन बाबूक साहित्‍य हमरा सामने अछि ,तीनो गोटे मे सँ केओ अपन गाम मे बाजै वला मैथिली क प्रयोग नइ केलखिन आ साहित्‍य मे आंचलिक आंदोलनक संभावनाक गर‍दनि घोंटि देल गेलै ।एखनो मैथिली मे लिखैक मतलब वैह मैथिली भेलै जे दरभंगा आ मधुबनीक संभ्रांत वर्ग मे लोकप्रिय अछि आ ऐ मे कोनो हस्‍तक्षेप आ अंतर करबाक अर्थ भेल ओइ भदेस मैथिलीक समर्थन जेकरा मैथिल विद्वत् समाज कहियो प्रोत्‍साहित नइ केलकै ,तें रेणु सन क्‍लासिक लेखक अपन प्रारंभिक रचनाक अलावे मैथिली सँ दूरी बनेने रहला ।

 एखनो साहित्यिक मैथिली आ मानक मैथिली कें एके मानल जाइत अछि ,जखन कि मानक मैथिली मूलत: राजकाज मे प्रयुक्‍त होमए वला मैथिली भेल आ साहित्यिक मैथिली मे एकाधिक भेद रहबाक चाही ,आ मैथिली के प्रत्‍यास्‍थ रूख देखबैत सभ क्षेत्रभेद कें अपना मे समाविष्‍ट करबाक चाही ,मुदा मैथिली मे ऐ समावेशी दृष्टिक सदैव अभाव रहलै आ अंगिका वा बज्जिका क' प्रति उपेक्षाक रूख सदैव मैथिली कें कमजोर केलकै ।मैथिल विद्वान 'शुद्ध मैथिली' पर बेंशी धियान देता आ भरि जिनगी शुद्धे करैत करैत भाषा के समाप्‍त करबाक उपक्रम करैत रहता ।साहित्यिक रूपभेद कें मानक मैथिली सँ अलग करबा पर कोनो धियानक जरूरी नइ  बूझल जाइत अछि एहि ठाम ।मानकता जरूरी छैक मुदा समाजिक आ सांस्‍कृतिक यथार्थक उपेक्षा क' बाद नइ ।थार्थक उपेक्षा क' बाद नइ ।

Thursday 14 March 2013

जेहन मौका

जेहन मौका तेहन लाठी या कट्टा
खूनसुंघा खूनचुस्‍सा खुनचट्टा
आरि पर घूमै किसान के बट्टा
देखियौ नाचै छै मोटका कनकट्टा
अहां जे छियै आ जे अनुभव करै छियै ,से नइ लिखबै ,बल्कि जे बड़का लेखक ,कवि कहि देलखिन ओकरे लिखबै आ हुनके जँका लिखबै ,तखन अहां लिखते कथी लेल छी ।आ कालिदास आ विद्यापति भेनए एते असान छलै तखन त' ई देश साल मे दू-चारि टा कालिदास जरूरे उपजा के कोठी मे नुका के वा मंदिर मे सजा के राखतै छल ,मुदा से त' भेलै नइ ,विद्यापति के नकल केनिहार एकोटा बाद वला विद्यापति कतौ कहां देखाइत छैक ।
प्रेम के बूझलियै नइ ,प्रेम मे पड़लियै नइ ,प्रेम के सराहलियै नइ ,सकारलियै नइ मुदा लिखनै शुरू क' देलियै प्रेम पर आ प्रेम पर लिखनै त' बड असान छइ ने ,तें लिखैत रहू जे फननमा/फलनमी कत्‍ते सुंदर छैक ,कत्‍ते नीक आ ओ नइ रहतै त' कत्‍ते फर्क पड़तै ।ओकर अंग-प्रत्‍यंग ,बात-व्‍यवहार क प्रशंसा ,संगक सत्‍कार आ बिछोहक दुखक वर्णन आ बस भ' गेलै प्रेम..............ई सब रीतिवादी प्रेम भेलै ,एहन प्रेम जे सब ठाम मिलि जाइत छैक आ जइ मे शास्‍त्रक अनुशासन बेसी आ आत्‍माक गन्‍ह नदारद बुझाइत छैक ।
लिख' लागलियै देश पर आ पंद्रह अगस्‍त ,छब्‍बीस जनवरी ,दू अक्‍तूबर आ आनोआन तिथि पर वैह पिष्‍टपेषण ,बढि़ जाउ त' प्रांत सब पर ,भाषा सब पर ,नदी आ वनस्‍पति सब पर ।दू-चारि टा गारि इंग्‍लैंड आ अमेरिकाक लेल आ कनेक आर आगू आयब तखन पाकिस्‍तान आ चीनक लेल ।बस देशप्रेमक परिधि एतबे ।स्‍टॉक एतै खतम ।

तहिना परिवारक सभ व्‍यक्ति,गुरू,स्‍त्री ,माए-बाप ,भाए ,दोस आदि पर लिखल कविता एकबगाह नइ हेबाक चाही ।एहनो नइ जे कृतिम सामंजस्‍य भेल होए ,बल्कि नीक साहित्‍य विभिन्‍न भाव विचार ,इतिहास आ वर्तमानक संश्‍लेष करैत मागै भले नइ देखबै प्रश्‍नाकुलता जरूर पैदा करैत छैक ।मुदा सबसँ महत्‍वपूर्ण छैक ईमानदारी ।हरेक स्‍तर पर जे बूझैत छी ,वैह कहू आ ओतबे पर बल दिय' ।पाखण्‍ड ,लफ्फाजी ,डपोरशंखी वृत्ति सँ मैथिली क' हला-भला होए वला नइ ......... 

कत’ बाली आ मनटीक्‍का देखेबाक लेल

कत’ बाली आ मनटीक्‍का देखेबाक लेल
कत’ हाथ भरिक घोघ बचेबाक लेल
कहियो देखलौं किएक नइ देखलौं किएक
देख देखिए के धुंआ बरहेबाक लेल
कनखिया मटकिया या चियारि आंखि के
भीतरघुन्‍नी हूनर सँ पचेबाक लेल

कत्‍ते बेर जुट्टी

हे सुन्‍दरी सुनु कनि
अहांक ई विशाल केशराशि कत्‍ते शैम्‍पू खाइत अछि
अहा ! नइ बूझलियै ई गद्य
ई केशक सदाबहार जंगल कत्‍ते तेल पीबैत अछि
डेली कि हफ्ता मे
कत्‍ते बेर जुट्टी
कत्‍ते बेर कंगही
कत्‍ते बेर खोपा
ऐ जटाजूट मे मनुक्‍खे करत रहबाक अभिलाषा
वा आनोआन जीव-अजीव
आ कत्‍ते बेर ढ़ील-लिखक लेल मृत्‍युक फरमान
कत्‍ते बेर मुंह ,नाक ,आंखि झंपा जाइछ अन्‍हार मे
कत्‍ते बेर झूलैत झालैत लट
मारैत गाल पर सटक्‍की
आ कखनो के बहैत दहो-बहो नोर
हे पार्वती अहां शंकर त’ नइ ??